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ईश्वर निंदक सब जग सारा-१

साधना के पथ पर
साधना के पथ पर
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ईश्वर निंदक सब जग सारा.
फिर क्यों ? केवल दोष हमारा.
एक अदृश्य, असीमित, अतुलनीय, अलौकिक शक्ति जो आदि भी है और अनंत भी, जो कल भी है और आज भी. जो लाभ-हानि, यश-अपयश, जनम-मरण, ज्ञान-अज्ञान, मंदिर-मस्जिद, अन्दर-बाहर, अपना-पराया, जीत-हार सबसे परे है. फिर भी हम उसे रिश्तों, सीमाओं और आस्थाओं में जकड़ने की नाकाम कोशिश करते रहते हैं. इस प्रकार हम ईश्वर की निंदा करते हुए एक ऐसे तत्व और विश्वास को ईश्वर का नाम देते हैं जो ईश्वर कदापि हो ही नहीं सकता. वो परम पिता परमेश्वर श्रृष्टि के आरम्भ से पहले भी था और विनाश के बाद भी होगा. श्रृष्टि सृजन के साथ या बाद जो भी जन्मा है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है. ब्रह्माण्ड, आकाश गंगाएं, तारें, ग्रह, उपग्रह, नक्षत्र, पिंड, धरती, प्रकृति और प्रकृति पर निर्भर सभी जीवित और मृत तत्व सबको एक दिन ख़त्म होना हैं. परन्तु इस सत्य को समझना उतना ही मुश्किल है जितना ईश्वर के होने से इंकार करना हैं. यह भी सत्य है कि इस श्रृष्टि का हरेक अवयव एक दुसरे से जुड़ा हुआ है. एक का होना और न होना दुसरे को प्रभावित करता है. यदि पृथ्वी की बात की जाय तो इस पर विद्यमान जीवन एक-दुसरे और वातावरण के साथ-साथ पिंडो, नक्षत्रों, उपग्रहों, ग्रहों और तारों से प्रभावित रहा है. यही कारण हैं कि दिन-रात, बिजली-बारिश और जीवन-मृत्यु जैसे क्रिया और प्रतिक्रिया का सही ज्ञान न होने के कारण मनुष्य और अन्य जीवों के अन्दर इसके प्रति भय और डर ने जन्म लिया. समय के साथ-साथ हम मनुष्यों के मस्तिष्क का विकास तेजी से होता गया और हम अपने सोच और विवेक से धीरे-धीरे रहस्यों से पर्दा हटाते गए और जिस से पर्दा नहीं हटा पाए उसके आगे नतमस्तक होते गये और उसे ईश्वर मानते गए. इस प्रकार हम ईश्वर की निंदा और तिरस्कार करते हुए डर और अज्ञान से जन्मे तत्व को ईश्वर की संज्ञा देते आये. साथ ही प्रकृति पर हमारी निर्भरता ( स्वार्थ ) ने उसके अवयवों को ईश्वर मानने के लिए प्रेरित किया. इस प्रकार डर, अज्ञान और स्वार्थ से जन्मे तत्व ने ईश्वर की जगह ले ली और शुरू हुआ ईश्वर की निंदा का सिलसिला जो आज भी मानव के मानसिक और बौदिक विकास होने के बाद भी रुकने का नाम नहीं ले रहा. इसी डर, अज्ञान और स्वार्थ ने अनेक देवी और देवताओं को जन्म दिया. जिसको ईश्वर मानकर हम ईश्वर का अपमान और निंदा करते जा रहे हैं.

हमारे डर, अज्ञान और स्वार्थ ने प्रकृति के अवयवों और क्रियाओं को विभिन्न प्रकार के देवी और देवताओं का नाम देकर समाज में अन्धविश्वास और आडम्बर फैलाते रहा तथा हम हकीकत को नजर अंदाज करने का खेल खेलते आये. ईश्वर जो इन अंधविश्वासों और मान्यताओं से परे एक ऐसा सत्य है जिसका आरम्भ ही अंत है और अंत ही आरम्भ अर्थात हम मानवों और इस ब्रह्माण्ड के किसी अन्य विकसित तत्व के समझ और पकड़ के बाहर. इस ब्रह्माण्ड का अत्यंत सूक्ष्म कण जिसके आगे आज की नैनो टेक्नोलाजी भी असफल है और आने वाली हर टेक्नोलाजी असफल रहेगी. उसमे ईश्वर की पूरी शक्ति नीहित है. साथ ही इस अपरिभाषित और अतुल्य ब्रह्माण्ड जिसके आगे प्रकश-वर्ष जैसा मापक भी असफल है, में उसकी पूरी शक्ति फैली हुई है. एक ऐसा सच जो हम सबकी सोच और परिकल्पना से बाहर है. यक़ीनन यह बात हम लोगो को अजीब लगती है कि एक छोटे से बिंदु में पूरा ब्रह्माण्ड कैसे नीहित हो सकता है जबकि वह बिंदु इसी ब्रह्माण्ड का एक अभिन्न अवयव है. यदि ऐसे मैं कोई व्यक्ति उसे जानने और समझने की बात कर रहा है तो वह खुद के साथ-साथ दूसरों को भी धोखा दे रहा है. साथ ही निंदा कर रहा है उस परम सत्य ईश्वर की. इस बात को एक छोटे से उदहारण के साथ रखना चाहूँगा. ब्रह्माण्ड में पाए जाने वाले ब्लैक होल के संपर्क में आने वाला हरेक छोटा या बड़ा पिंड अस्तित्व विहीन हो जाता है. यहाँ तक कि वह प्रकाश को भी अवशोषित कर लेता है. ब्रह्माण्ड के अन्दर पाए जाने वाला यह ब्लैक होल अपने अन्दर ब्रह्माण्ड को भी समाहित करने का सामर्थ्य रखता है जिसका कि वह स्वयं हिस्सा है. मैं समझता हूँ कि यह सबसे बड़ा उदहारण है ईश्वर के आदि और अनंत होने का. जो हम सबके सोच और समझ से परे है. यदि कुछ समय के लिए मान लिया जाय कि अज्ञान, डर और स्वार्थ से जन्मा तत्व ही ईश्वर है तो उसको लेकर इतनी अज्ञानता, डर और स्वार्थ क्यों? यदि यही सच है तो फिर इसे ईश्वर का नाम देकर उसकी निंदा क्यों? बाकि बाते अगले अंक में….
और अंत में, मैं उनके लिए कुछ कहना चाहूँगा जिनकी तकलीफे मेरी बाते सुनकर बढ़ गयी होंगी….

ईश्वर निंदक सब जग साराहैरान हूँ उसकी बातों पर,
मकान शीशे का है और
वह पत्थर की बात करता है.

जाने क्या सूझी है उसको
कांपते है हाथ और
तलवार की बात करता है.

यही नहीं, आज-कल सुना है;
नेवलों की शहर में घुसकर,
साँप की बात करता है.

रोना आता है उसकी किस्मत पर,
गुनाहों के दलदल में पलने वाला
‘अलीन’ से परिणाम की बात करता है.

कितनी गलत फहमी है उसे;
समंदर की लहरों से,

कमबख्त आग की बात करता है….

हाँ….हाँ…हाँ..

आशा करता हूँ आपकी और मेरी मुलाकात जल्द ही होगी तबतक के लिए अनुमति चाहूँगा……………….अनिल कुमार ‘अलीन’

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