दो बुद्धिमान मूर्खों की मुर्खता
कल कुछ सरकारी काम से लखनऊ में था. जाने से पहिले, अपने अजीज दुश्मन आनंद प्रवीन से दूरभाष पर वार्तालाप के दौरान पता चला कि एक बुड्ढा जिसका हाथ-पैर तोड़ने के लिए पिछले दो महीने से खोज रहा हूँ. वही का रहने वाला है. अतः सोचा चलो वहाँ एक पंथ दो काज हो जायेगा. एक तो कार्यालय का काम भी कर लूँगा और साथ ही बुड्ढे के कार्यालय पहुँच कर उसका हाथ-पैर भी तोड़ दूंगा. यह सोचकर गया परन्तु उससे मिलने के बाद मैं कुछ समय के लिए अवाक् रह गया. अतः आप सभी को भी अवाक् करने के लिए जे जे मंच पर उस बुड्ढे की छवि और उससे मिलने के बाद की हकीकत पर आज सुबह ही आलेख तैयार करके बैठा था कि अचानक जे जे मंच पर चल रहे मान-मर्यादा के व्यापर पर एक और आलेख ” जे जे व्यापर मंडल और हम दो लुटेरे’ भी तैयार हो गया. अभी इन दोनों को पोस्ट करनी की बात सोच ही रहा था कि चिखेरू और पखेरू के संवाद मेरे कानो तक पहुंचे जो मित्र संदीप के नए आलेख “श्रीमान लख्खा प्रसाद, सितीया एंड Pakiya की लफबाजी…!” पर हम दोनों मित्रों का उपहास था. मैं सोचा कि चलो बुड्ढों और जे जे व्यापर मंडल की तकलीफे बढ़ाने से पहिले उन दोनों द्वारा प्रस्तुत उपहास को आप सभी के बीच रखकर आप सबको भी थोड़े समय के लिए हँसा दूँ.
चिखेरू- यार, संदीप भाई का तत्कालीन आलेख को पढ़ने के बाद एक बात याद आ गयी.
पखेरू- कौन सी बात यार?
चिखेरू– अरे यार, बहुत पुरानी है और वो भी मुग़ल कालीन या यूँ कहो मेरे पिछले जन्म की. जब मैं कबूतर हुआ करता था और ताजमहल की मीनारों पर बैठकर पोटी किया करता था…हाँ….हाँ..हाँ..
पखेरू- सच में, भाई ! बहुत माजा आता होगा न….मीनार पर बैठकर पोटी करने में ……! भाई जल्दी वह बात बताओ न ….अब रहा नहीं जा रहा हैं…………!
चिखेरू- इस बात को सुनने के लिए, पहिले पोटी करने की मुद्रा में बैठ जाओ…..और पूरा ध्यान पोटी करने में मतलब सुनने में लगा दो…….!
पखेरू- लो भाई बैठ गया और ……लगा दिया… !
चिखेरू- क्या लगा दिए ……?
पखेरू-अरे भाई ध्यान……आप ही ने तो कहा था……लगाने को….!
चिखेरू- अरे हा…..! तो ठीक है ..ध्यान से सुनना……!
यह बात उस समय की हैं जब ताजमहल बनकर नया-नया तैयार हुआ था और उसके उद्घाटन होने से पहिले मैं उसके मीनार पर बैठकर उद्घाटन कर दिया था. वो भी क्या हसीं दिन थे……..!
पखेरू–सचमेंभाई!….उसकाउद्घाटनआपनेकियाथा. मुझेतोयकींनहींहोता………!भाईकैसेकियाथा…..आपने.
चिखेरू–अबेबुरबककेनाती, कोईभीबातकरतेसमयबीचमेंमतटोकाकर ……जहाँतकउद्घाटनकीबातहैतोशाहजहाँकोभीयकींनहींहोरहाथाकिउसकाउद्घाटनमैंनेकियाहैऔरवोभीतबजबशाहजहाँताजमहलबननेकेबादआखेंबंदऔरमुँहखोलकरऊपरकीतरफसरकरकेमुमताजकोयादकररहाथा. तभीमीनारकेऊपरबैठाहुआमैंपोटी करदियाजोसीधेउसकेमुखमेंजागिरीऔर इसी के साथ ही हो गया ताजमहल का उद्घाटन..…….हाँ…हाँ..हाँ…! औरमजाकीमतपूछ ….. शाहजहाँकुछबोलनेलायकनहींथा. बसइतनाहीकहसका. .. मैंख़ामोखाहीइसकोबनानेमेंआधाखजानाख़त्मकर दिया…!मजाक-मजाक में कुछ ज्यादा ही मजाक हो गया…
पखेरू–ही…ही…ही………! भाईमजाआगया….दिलगार्डेन–गार्डेनहोगया…..!
चिखेरू– यदिज्यादेमजाआगयाहैतोकुछफोलीभाईकोदेदोऔरकुछइनकेमित्र अलीन भाई को….ताकियह दोनों बुद्धिमान मूर्खोंकादिमागठिकानेपरआजाये……औरदूसरीताजमहलजैसीकोई रचनायाकल्पनाकरनेकीख्वाब भी हम मूर्खों के बीच नदेखे…………! हाँ….हाँ….हाँ…!
पखेरू- ही…ही…ही…भाई बात तो मजेदार कह रहे हो परन्तु इन दोनों बुद्धिमान मूर्खों से मजा की बात , भला करेगा कौन……..? एक करैला है और दूसरा नीम….ही…ही…ही…!
Read Comments