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गया. चूँकि मेरा दोस्त मृदुभाषी और बहुत ही उदारवादी था जो किसी के दिल को ठेस नहीं पहुँचाना चाहता था. अतः मेरे लाख मना करने के बावजूद वह उस संस्था को ज्वाइन किया जिसके क्रिया-कलाप निश्चय ही समाज सेवा और देश के विरुद्ध थे क्योंकि आज भी हममे से लगभग ९९ % भारतीय अपने देश के लिए दुसरे देशों, विशेष रूप से पाकिस्तान से लड़ना देशभक्ति समझते हैं जबकि राष्ट्र विरोधी क्रिया-कलाप जैसे भ्रष्टाचार, जात-पात, धर्म और आत्म मान-सम्मान के लिए सेवा इत्यादि को बढ़ावा देकर इस देश को अन्दर ही अन्दर खोखला कर रहे हैं. अब इससे बड़ा देश देशद्रोह का उदहारण क्या हो सकता है? परन्तु मेरा दोस्त ऐसा नहीं था और न ही हैं फिर भी चूँकि ऐसे लोगो के साथ था तो मेरी नज़र में वह देश द्रोही था. अतः मैं उसका साथ छोड़ दिया. परन्तु मुझे अपने गलती का एहसास एक साल के बाद हुआ क्योंकि ९९ % देश-द्रोहियों की वजह से १% देश-प्रेमियों से दुश्मनी तो नहीं की जा सकती. वैसे भी यह देश इन्ही देशभक्तों के कारण तो बचा हूँ. उन १२ महीनों के अन्दर अपने दोस्त को बहुत मिस किया और उन दिनों उसके प्रति मेरी नाराज़गी ने एक ग़ज़ल को जन्म दिया था. आज वह ग़ज़ल आप सभी के बीच रख रहा हूँ…..आशा करता हूँ …आप सभी को पसंद आएगी……………
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