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सफ़र में हो तो याद रहे ………

साधना के पथ पर
साधना के पथ पर
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सफ़र में हो तो याद रहे .........सफ़र में हो तो याद रहे .........

सुख भी होगा और दुःख भी. सवाल यह नहीं कि सफ़र में सुख-दुःख होगा, सवाल इस बात का है कि क्या सचमुच संसार में सुख-दुःख जैसी कोई चीज है? मैं समझ सकता हूँ कि मेरी बाते आप सभी को कुछ अजीब लग रही होगी. यदि जिंदगी की तुलना एक सफ़र से की जाय तो इसमे कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. सफ़र जिसका अपना एक आरम्भ और अंत होता है. इन दो बिन्दुओं के बीच ऐसे तमाम पल जो किसी को सुख देते हैं तो किसी को दुःख. क्या हम कह सकते हैं कि ये पल सुख और दुःख के स्रोत हैं? या यह सुख और दुःख से परे कुछ और? आइये इस पर एक सफ़र के उदहारण से विचार करते हैं.मान लीजिये कि मैं और आप किसी ट्रेन से बलिया से आजमगढ़ की यात्रा पर हैं जो कि कुल तीन घंटे का सफ़र हैं. मुझे हरेक हाल में तीन घंटे के अन्दर आजमगढ़ पहुँचना है जबकि आपको किसी कारणवश एक घंटे के लिए इन दो स्टेशनों के बीच के मऊ जिले में एक घंटे के रुकना है. संयोग से ट्रेन मऊ में ख़राब हो जाती है तो क्या यह समय मेरे लिए भी संयोगी होगा. संभवतः नहीं क्योंकि मैं समय से आजमगढ़ नहीं पहुँच पाउँगा जबकि आपका काम समय से हो जायेगा. इस प्रकार एक ही ठहराव मेरे लिए दुःख का सबक और आपके लिए सुख का सबक बन जायेगा.
हकीकत तो यह है कि संसार में सुख-दुःख जैसी कोई चीज है ही नहीं. यदि परिस्थिति हमारे अनुकूल है तो सुख वरना दुःख. इस प्रकार सुख-दुःख न ही स्थायी है और न ही समानान्तर. बरसात की बात की जाय तो यह किसानो के लिए सुखदायी है तो कुम्हारों के लिए दुःखदायी. यह सुख-दुःख परिस्थितियों से जुड़े हमारे इच्छाओं का परिणाम हैं.जब इस सफ़र में सुख और दुःख हैं ही नहीं तो इसे स्थायी बनाकर रोना और हँसना क्या? तो क्यों न इस जीवनरूपी सफ़र में आने वाले ठहराव और बेशकीमती समय को कुछ ऐसे कामों में लगाया जाय जो जिंदगी से बहुत करीब हो. जैसे किसी रोते को हँसाया जाय, किसी जरुरतमंद की जरुरत पूरी की जाय, अँधेरे में दीप जलाया जाय और भी बहुत कुछ जो सुख और दुःख से कहीं दूर हो, जो इच्छाओं से परे हो. यह सफ़र है अपने मान्यताओं, उम्मीदों, बंधनों और विश्वासों से ऊपर उठने का, यह सफ़र है सतत कुछ नया करने का, यह सफ़र है………….. और सफ़र में हो तो याद रहे……………

सफ़र में हो तो याद रहे .........


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