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जरुर आऊंगा (संस्मरण)

साधना के पथ पर
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जरुर आऊंगा (संस्मरण)वक्त: शाम ६ बजकर २३ मिनट     दिन:शुक्रवार             तारीख: ०८/०२/२०१४

सुबह से स्नान करने की फुर्सत न मिलने के कारण ज्योहीं बाल्टी नीचे रखकर पानी की टोटी खोला ही था कि दरवाजे पर किसी के दस्तक के साथ ही ठक-ठक की आवाज हुई. दरवाजा खोलकर देखा बगल के फ़्लैट में रहने वाले मास्टर साहब वैवाहिक निमंत्रण-पत्र लेकर खड़े हैं.

“साहब! बेटी की शादी है. सपरिवार आपको आना.”

“जी, जरुर आऊंगा.”

“जरुर आऊंगा” से याद आया कि यह वाक्य आदरणीय नाना जी और आदरणीय बृजेश जी से भी बोल चूका हूँ. वह भी ज्यादा नहीं, एक दो दिन पहले की ही बात है. दरअसल कैफ़ी आजमी अकेडमी, लखनऊ में आज होने वाले काव्य गोष्ठी को लेकर मैं बहुत ही उत्साहित था. इसकी सूचना आदरणीय बृजेश जी द्वारा फेसबुक पर दिए गए निमंत्रण से प्राप्त हुई. इस सम्बन्ध में नाना जी को फोन करके पता किया तो पता चला कि आयोजक मंडल हम जैसे नए रचनाकारों को समय-समय पर ऐसे आयोजनों के माध्यम से एक नया आयाम देने की कोशिश करता है. नाना जी से आदरणीय ब्रिजेश जी का सेलफोन नंबर लेकर अपनी दुबिधा दूर किया. उन्होंने ने स्पष्ट कहाँ कि आप सादर आमंत्रित है सिवाय एक आशंका आजमगढ़ से लखनऊ पहुँचने का. यह पहला मौका था कि कोई मंच मेरी प्रतिभा दिखाने का मौका दे रहा था. ऐसे में यदि यह आयोजन किसी सुदूर ग्रह पर भी होता तो मैं कोशिश करता किसी तरह एक अंतरिक्षयान का प्रबंध करके पहुँचने का. मेरे लिए यह बताना बहुत मुश्किल है कि मैं कितना खुश था इस अवसर को पाकर. मेरी हालत उस लंगूर की तरह थी जिसके मुख कभी किसी तरह अंगूर लग गया. परन्तु अफ़सोस उसका स्वाद न ले सका.

अभी कल की ही बात है. सुबह स्नान-ध्यान करके विकास खंड-मेंहनगर से, कमिशनरी आजमगढ़ के सभागार में हो रहे एक दिवसीय सोशल ऑडिट प्रशिक्षण में भाग लेने को निकला. जहाँ आजमगढ़ मंडल के तीनों जिलों आजमगढ़, बलिया और मऊ के खंड विकास आधिकारी एवं अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी भाग ले रहे थे. लगभग दो घंटे चले प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन के उपरान्त अपने मनरेगा कार्मिक साथियों द्वारा विकास भवन के सामने किये जा रहे, पिछले १० महीने का बकाया मानदेय मांग हेतु हड़ताल में शामिल हुआ. यहाँ से कल शाम ५ बजे के बाद छूटने के बाद मेरे लिए कल की तारीख में करने के लिए केवल मात्र एक और आखिरी कार्य काल शाम की ट्रेन पकड़कर लखनऊ जाना था. जहाँ आज तीन बजे से पहिले कैफ़ी आज़मी अकेडमी पहुँचना था. मुझे नहीं पता कि आज के युवा रचनाकार ऐसे अवसर को किस रूप में देखते हैं. परन्तु मेरे लिए यह एक सुनहरा मौका था, एक रचनाकार के रूप में अपनी काबिलियत सिद्ध करने का. मेरे लिए यह आयोजन ऐसे था जैसे कोई वर्षों से मांगी जा रही दुआ आज बिन मांगे काबुल हो गयी हो. चूँकि ट्रेन शाम को १० बजे के बाद थी. अतः मैं विकास भवन  से एक किमी दुरी पर स्थित अपने मौसेरे चाचा जी के निवास स्थान की ओर पाठक जी के साथ उनके बाइक पर बैठकर निकल पड़ा. अभी सिधारी पुल पार ही किया था कि मोबाइल की घंटी बजी. जेब से मोबाइल निकालकर स्क्रीन पर देखा, यह तो चुनुमुनु की काल है. मेरी धर्म पत्नी जिसे मैं बहुत प्यार से कभी-कभी इस नाम से पुकारता हूँ वरना बाकी समय तो उनका बस एक ही नाम मेरे दिलों दिमाग पर छाया रहता है जिसे आप भलीभांति परिचित हैं. जी हाँ, आपने सही पहचाना. मैं अनजानी की ही बात कर रहा हूँ.

“हैलो! कहाँ हो”

“चाचा जी के यहाँ जा रहा हूँ. वहां से खा पीकर स्टेशन के लिए निकलूँगा.”

“ तुम जल्दी मेहनगर आ जाओ. मम्मी की तबियत बहुत ख़राब है. मुझे समझ नहीं आ रहा मैं क्या करू?”

“क्या हुआ? कुछ बतायेंगी?”

“मम्मी को ब्लीडिंग हो रही हैं. कमर और यूरिन के रास्ते के साथ-साथ पुरे शरीर में दर्द हैं. मम्मी दर्द से कराह रहीं हैं.”

“अनजानी! आप परेशान मत हो मैं अभी आ रहा हूँ.”

लगभग ८ महीने पहिले की बात है जब अम्मी मेरे साथ चोपन, सोनभद्र से आजमगढ़ आई थी. दरअसल उस दिन से लगभग एक साल पहिले से ही अम्मी यूरिन प्रॉब्लम से परेशान थी और उससे पहिले उनकी गर्दन की रीढ़ की हड्डी का ओप्रेशन हुआ था. वह बीते दिन मैं कैसे भूल सकता हूँ जब अम्मी मानसिक रूप से डिस्टर्ब थी और उन्हें नींद की गोली देकर सुलाया जाता था. एक रात नींद में बिस्तर से निचे गिरी और गर्दन की रीढ़ की हड्डी अपने स्थान से खिसक गयी. इस घटना ने अम्मी को एकदम अपंग और अपाहिज बना दिया. बहरहाल ओपरेशन के बाद रीढ़ की हड्डी सही तो कर दी गयी परन्तु बिस्तर से उठने में उन्हें महीनों लग गए. फिर भी स्थिति में काफी सुधार नहीं हुआ. वह बहुत धीमे-धीमे चलती थी. वह अपने हाथ से एकगिलास पानी भी नहीं उठा पाती था. तभी उन्हें यूरिन में दर्द की समस्या हुई. यूरिन सम्बन्धी समस्याओं के लिए पापा ने लगभग एक साल दवा चलाया था . किन्तु वक्त के साथ दर्द और बढ़ता ही गया. ऊपर से बार-बार होने वाले मलेरिया और तायफायड ने अम्मी का बुरा हाल कर दिया. लगभग ७५ किलोग्राम का शरीर आकर ४० किलोग्राम पर सिमट गया. इनकी बढती हुई पीड़ा को देखते हुए ८ महीने पहिले मैं अपने पास लेकर आया था. चूँकि शरीर इनका जर्जर हो गया था. अतः इनको होम्यो पैतिक दवा चलाना ही मुनाशिब समझा. यह सोचकर इन्हें राज्यकीय होम्यों चिकत्सालय से दवा शुरू करवाया. दवा असर करती गयी और यूरिन पीड़ा से मुक्त हो गयीं. कमाल यह था कि इनके हेल्थ बहुत सुधार हुआ लगभग इनका वजन ६० किग्रा तक हो गया. जिनसे एक गिलास पानी नहीं उठता था. वह २० किलों की पानी की बाल्टी उठा लेती थी और अपनी पोती अलीना को खूब खेलाती थी. बहुत कुछ नार्मल हो आया था. जाने आज क्या हो गया कि तबियत इतनी खरब हो गयी.

पाठक जी के साथ तुरंत २२ किमी का सफ़र तय करके मेहनगर पहुंचा. एक जीप रिजर्व करके अम्मी को राजकीय महिला अस्पताल लाया. उस समय रात को १० बज रहे थे. चूँकि वहां प्रसव के ही सिर्फ केसेज देखे जाते हैं. अतः हमें रिटर्न कर दिया गया. वहां से हम रात को लगभग साधे १० बजे के एन लाल मेमोरियल, लखिरामपुर आजमगढ़ पहुंचे. डॉक्टर ने इमर्जेंसी भर्ती ली. दर्द का इंजेक्शन दिया. कमरदर्द आराम तो हुआ पर यूरिन का दर्द वैसे ही बना रहा. रात भर अम्मी दर्द से कराहती रही. न ही वो सो पायी और न ही मैं. चूँकि उनको १५-१५ मिनट पर पेशाब लग रहा था और दर्द से उनको एक पग चलना मुश्किल था. अतः उन्हें टॉयलेट तक सहारा देना पड़ रहा  था. सुबह दो-चार टेस्ट हुए तो पता चला कि उन्हें २२.७४ मिमी का स्टोन है जिससे यूरिन थैली में इन्फेक्शन बना हुआ है. डॉक्टर का कहना था कि दो-चार दिन के बाद जब सुजन कम होगा तभी ओपरेशन संभव हो पायेगा. अतः अभी तक अस्पताल में ही था. चूँकि पापा और मेरा छोटा भाई तडके सुबह ही हॉस्पिटल आ गए. अतः मन को कुछ आश्वासन मिला. चूँकि कई महीनों से न ही पापा को तनख्वाह मिला है और न मुझे. जो कुछ भी पैसे पापा के पास थे, उसे छोटे भाई को देकर चले गए चोपन पैसों का इंतजाम करने. मेरे पास दो-ढाई हजार रूपये थे वो तो रात ही को ख़त्म हो गए. अतः मैं भी आ गया मेहनगर, यहाँ अनजानी और अलीना दोनों ही अकेले हैं. अतः रात  को इनके साथ भी रुकना जरुरी है. फिलहाल अम्मी के साथ भाई है. मैं सुबह पैसों का प्रबंध करके हॉस्पिटल जाऊंगा. उससे पहिले आदरणीय नाना जी और आदरणीय बृजेश से माफी चाहूँगा कि मैं काव्य गोष्ठी में शामिल नहीं हो पाया. परन्तु एक बार फिर बिश्वास दिलाना चाहूँगा कि अगली बार एक बार पुनह मौका दे. मैं अबकी जरुर आऊंगा.

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